रिश्ते और समाज स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु कविता25-Feb-2024
दिनांक- 25,02,2024 दिवस- रविवार विषय-रिश्ते और समाज स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु
काम करो तुम जग में ऐसा, सर ऊंँचा हो माॅं बाप का। संतति कहलाने के बनो अधिकारी, जब फैले यश प्रताप का।
सुख- दुख में साथ चले जो, वह भ्राता कहलाता है। दिन, मास, वर्ष का कहीं, पूरे जीवन का नाता है।
समय अनुकूल और साथ निभाए, ना वह पत्नी कहलाती। प्रतिकूल समय में साथ रहे , भार्या जो है हॅंसती- हॅंसाती।
चंचल हो जो हिरनी जैसी, फूलों जैसी कोमल हो। जूही सी जो खुशियाॅं बिखेरे, बहन का प्यार बेमोल हो।
तुमसे कुछ भी लेने का, जो ना करती अभिलाषा है। तिनका भर यदि उसे दिए तो, खुशियों से झोली भर जाता है।
बड़े भाग्यशाली वो लोग, जिस घर में बेटी जन्मती है। उसकी ना कोई माॅंग है होती, जो दे दो उसमें खुश होती है।
जीवन में जब आए संकट, उसमें साथ निभाते हैं। वो जन ही हैं घराना कहाते, जो संग में रोते- मुस्काते हैं।
लोग बहुत और मत बहुतेरे, ऐसी घड़ी जब आए यार। संग बैठ जो करें मशवरा, उसे ही कहते हैं परिवार।
साए सा जो हर संकट में, साथ खड़ा है रहता। मित्र ,सखा व संगी साथी , उसे ही जग है कहता।
वक्त,बेवक्त साथ खड़ा हो, वह संबंधी कहलाता। धन-संपत्ति साथ भले छोड़े, वह साथ है छोड़ न पाता।
जीने की जो कला सिखाए, होता संबंधों का है जाल। मानवता पर जब आए त्रासदी, समाज सिखाए उबरना लाल।
उस बेटे को बेटा कहते, जो माॅं- बाप का दायाॅं हाथ बने। करतब ऐसा कर जाए , जो सबके लिए सौगात बने।
साधना शाही,वाराणसी
RISHITA
26-Feb-2024 04:58 PM
Amazing
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Mohammed urooj khan
26-Feb-2024 01:46 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
26-Feb-2024 08:50 AM
बेहतरीन अभिव्यक्ति और खूबसूरत भाव
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